Sunday, March 22, 2020

यदुवंश का इतिहास


यदुवंश का इतिहास | उत्पति और उनके वंशज




प्रिय पाठको मैं यह लेख यदुवंश की उत्त्पति के संदर्भ में लिख रहा हु और उनसे जुडी कुछ रोचक घटनाओ का वर्णन कर रहा हू | बहुत से लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे इसलिए मै यह लेख समस्त पाठको के लिए एक सबसे प्राचीन समाज यादव समाज जो की ५००० साल से भी अधिक पुराना है  के बारे में लिखने जा रहा हु   और यह तथ्य मेरे द्वारा नहीं बल्कि हमारे वेद और पुराण में  यह जानकारी दी हुयी है जैसा के                                         लिखने जा रह हु जो यादवो के इतिहास के बारे में नहीं जानते पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथो से लेकर प्राचीन इतिहास तथा मध्य इतिहास को मध्यनजर रखते हुए यह पुरा लेख तैयार किया गया है यह समस्त उल्लखित सारांश वेद , पुराण  एवं इन्टरनेट पर उपस्थित जानकरियो को पुष्टि करने का बाद ही इस लेख में संकलित किया गया है 








,अगर आप वेद पुराण में विश्वास करते है तो आपके के लिए यह शत प्रतिशत सत्य है अन्यथा यह एक जानकारी मात्र के लिए है जो की विभिन्न स्त्रोतों जैसे के वेद , पुराण, उपनिषद, विभिन्न ऐतिहासिक लेखको के किताबो तथा इन्टरनेट पर उपलब्ध लेखो एवं प्रकाशित वीडियो के माध्यम से प्राप्त जानकारी को उन्हें धार्मिक ग्रंथो से पुष्टि करने के बाद ही  प्रकाशित किया गया है|






वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां ।
यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।।
(श्रीमदभग्वत् -महापुराण)
अनुवाद: यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा.
अब मै यदुवंश या यादव वंश के उत्पत्ति के बारे में उल्लेख करने जा रह हु चन्द्रवंशीय क्षत्रिय महाराज यदु के वंशज यादव या यदुवंशीय 










कहालते है यादव वंश प्रमुख रूप से आभीर वर्तमान अहीर, अन्धक, वृष्णि भोज , कुक्कर , सात्वत, चेदी ,हैह, कलचुरी से मिलकर बना था यह लोग प्राचीन भारतीय साहित्य में यदुवंश के प्रमुख अंगो के रूप में वर्णित है यदुकुल भारतीय इतिहास के सबसे लम्बे लिखित इतिहास वाले कुलो में से एक है महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण इस कुल के सबसे प्रसिद्ध  सदस्य है | वेद तथा पुरानो में यादव जाति को पवित्र बताया गया है | प्राचीन, मध्यकालीन, तथा आधुनिक भारत की कई जातियां तथा राजवंश स्वंम को यदु का वंशज बताते है और यादव नाम से जाने जाते है इतिहासकार जयंत गडकरी के अनुसार आभीर वर्तमान अहीर अन्धक , व्रशनी , भोज , कुक्कर , सात्वत , हैह , चेदी, कलचुरी, को संयुक रूप से यादव कहा जाता था जो भगवान श्रीकृष्ण के उपासक थे यदुवंश की उत्पत्ति
यादव या यदुवंश की उतपत्ति अत्री और अनसुइया के पुत्र चन्द्र से बताई गयी है जो की श्रीमद भागवद पुराण में वर्णित है चंद्रदेव के पुत्र हुए बुध बुध के पुत्र हुए पुरुरवा पुरुरवा के पुत्र हुए आयु , आयु के पुत्र हुए नहुष, नाहुष के पुत्र हुए  ययाति ,ययाति के पुत्र हुए यदु ,तुर्वस , द्रुहू , अनु , पुरु | इन्ही में से महाराज ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यादव या यदुवंश की उत्पत्ति हुयी |












 इन्ही यदु के वंशज यादव या यदुवंशी कहलाते है |राजकुमार यदु एक स्वाभिमानी एवं सुसंस्थापित शासक थे यह ऋग्वेद में वर्णित पांच आर्य जानो पंचजन या पंच क्षत्रिय या पंच मानुष में से एक थे महाराजा यदु के चार पुत्र सहस्त्रजित , कोष्टा , नल तथा रिपु थे | महाराजा यदु ने घोसणा की कि उनके वंशज यादव या यदुवंशी कहलायेंगे यदु के वंशजो ने अभूतपूर्व उन्नति की परन्तु वे दो भागो में विभाजित हो गए पी एल भार्गव के अनुसार जब राज्य का विभाजन हुआ तो सिन्धु नदी के पश्चिम का राज्य यदु के ज्येष्ठ पुत्र सहस्त्रजित को मिला और पूर्व का भाग यदु के दुसरे पुत्र क्रोष्टा को दिया गया यदु के पुत्र तथा सहस्त्रजित के पुत्र हैह बहुत पराक्रमी और प्रसिद्ध शासक हुए उनके नाम पर उनके वंशज हैह यादव या हैह वंशी या हैह वंशी यदुवंशी कहलाये |








 राजा क्रोष्टा के वंशजो को कोई विशेष नाम नहीं दिया गया वे सामान्यतः यादव ही कहलाये राजा क्रोष्टा के वंश में आगेचलकर विदर्भ नाम के राजा हुए उनके नाम पर उनके कुछ वंशज ने विदर्भ प्रदेश बसाया विदर्भ के तीन पुत्र हुए कुश ,क्रथ  एवं रोमपाद | इन रोमपाद के वंश में चेदी नाम के प्रतापी राजा हुआ इन चेदी के वंशजो को चेदी या चेदी वंशीय यादव या कलचुरी कहा गया |ऋग्वेद कल में ये चेदी यादव यमुना और विन्दु के बीच बसे हुए थे प्राचीन कल  में इन चेदी यादवो के दो जगह राज्य होने के प्रमाण मिलते है पहला नेपाल दूसरा बुंदेलखंड भगवान श्रीकृष्ण के बुआ का पुत्र शिशुपाल चेदिवंशीय यादव था तथा चेदी प्रदेश का यादव था कलिंग का राजा खारवेल भी चेदी वंशी यादव था जो अपने द्वारा बनवाए गए मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है| रोमपाद के दुसरे पुत्र क्रथ थे | क्रथ के पुत्र कुंती के वंशजो ने कुंती महाजन पद बसाये क्रथ के वंश में आगे चलकर सात्वत नाम के राजा हुए इन सात्वत के सात पुत्र हुए भजमान , भजी , दिव्य , वृष्णि , देवाव्रद , अन्धक, और महाभोज हुए | इन्ही सात्वत के वंशज व्रशनी , भोज , आभीर वर्तमान अहीर अन्धक वंशी कहलाये जो संयुक्त रूप से यादव कहे जाते थे| ये ब्रज क्षेत्र  आधुनिक हरियाणा , खांडवप्रस्थ  के राजा थे इनकी राजधानी मथुरा थी इन्ही सात्वत के वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था |






इस प्रकार यदु के पुत्र क्रोष्टा का वंश दो भागो में विभाजित हुआ पहला चेदी जो नेपाल तथा  बुंदेलखंड के राजा थे और चेदी वंशी यादव कहलाये दूसरी शाखा जिसकी राजधानी मथुरा थी सामान्यतः यादव ही कहलाये इन्हें कोई विशेष नाम नहीं दिया गया प्राचीन कल के सोलह महाजन पद में से अवन्ती महाजन पद जिसकी राजधानी उज्जैनी तथा माहिष्मती थी शूरसेन महाजन पद चेदी महाजन पद अवन्ती महाजन पद पर इन यादवो का राज्य था मध्य कल में यादवराजाओ का एक समूह मराठो में दूसरा समूह जाटो में  तीसरा समूह राजपूतो में विलीन हो गया और चौथे समूह के राजा सामान्यतः यादव ही कहलाये | इसी क्रम में भरतपुर के यादव शासक भी कालांतर में जाट कहलाने लगे पटियाला और नावा के शासक भी जाट हो गए पटियाला के महाराजा का तो वृद्ध ही था यदुकुल अवतंश  भट्टी भूषण | यदुवंशी राजा शूरसेन श्रीकृष्ण और पाण्डव दोनों के दादा थे प्राचीन ग्रीक यात्री और भारत में राजदूत मेगास्थनीज ने भी इनका परिचय सत्तारूढ़ जाति के रूप में दिया था सिकंदर का प्रतिद्वंदी पोरस भी इसी यादव कुल से था    

   





नाम  यादव

वंश  चंद्रवंशी
कुल यदुकुल
इष्टदेव  श्रीकृष्ण
ऋषि गोत्र  अत्रि
ध्वज   पीताम्बरी
रंग   केसरिया
वृक्ष  कदम और पीपल
नारा  जय यादव जय माधव
रण घोष   रण बंका यदुवीर
निशान  सुदर्शन चक्र










प्रिय पाठको चुकी यादव या अहीर एक ही जाति के दो नाम है इसके बारे में विस्तार से बताऊंगा भारत में in जातियों के उपनाम बिभिन्न बिभिन्न जगहों पर भिन्न भिन्न पाए जाते है अलग अलग विद्वानों के अलग मान्यताये है यहाँ पर अगर उपजातिया बताना चाहू तो अहीर , ग्वाला , सदगोप , मनिया , गोला , कोनार, जाधव , गोपाल, गोवारी, यादव , गोप इत्यादि उपजातिया है अगर इस समय की बात करे आँकडो के अनुसार तो भारत देश में २२% यादव माने जाते है चुकी २२% अधिकारिक तौर पर है अगर अनौपचारिक तौर पर आँकड़ा लिया जाये या सही तरीके से आंकड़ा लिया जाये  तो लगभग २५ से २७ प्रतिशत यादव है भारत में जो की  एक जाति न होकर एक देश का अस्तित्व रखते है |और भी अन्य कई देश है जिनमे यादव जाति बहुतायात में पाए जाते है पौराणिक ग्रंथो की बात करे जिसमे विष्णु पुराण, हरिवंश पुराण, पदम् पुराण ,तो इनमे हम यदुवंश का विस्तार से वर्णन पाते है | यादव वंश प्रम्मुख रूप से आभीर और वर्तमान अहीर, अन्धक , वृष्णि तथा शात्वत नामक संघायो से मिलकर बना है| इतिहासिक दृष्टि कोणों  से अहिरो ने १०८ ई०पू० में मध्य भारत में स्थित अहीर बाटक नगर या अहिरौरा तथा उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में अहिरवारा की नीव रखी थी |












 अहीर जातियों को अलग अलग क्षेत्रो में अलग अलग नमो से जाना जाता है जैसे गुजरात में अहीर, नंदवंशी , पथरिया , सोराथिया , पांचोली, मैस्चोस्य पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली के बात करे तो वहां पर यादवो को अहीर, सैनी, राव, यादव, हरल के नमो से जाना जाता है राजस्थान में बात करे तो अहीर और यादव के रूप में जाने जाते है |उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तरा खण्ड, छतीस गढ़  की बात करे तो वहा पर अहीर, यादव , महाकुल, ग्वाला , कोप ,कृष्नौत, मंजारोथ, गोरिया, कोर, भूतिया , राउत ,लैतवर, राव, घोसी इनके नामो से जाना जाता है और बंगाल ओरिसा की बात करे तो घोष , ग्वाला , सदगोप , यादब , और प्रधान के नाम से जाना जाता है हिमाचल , उत्तराखंड के बात करे तो यादव और रावत के नाम से जाना जाता है |महाराष्ट्र में यादवो को यादव , गावली , गोला , अहीर , के जाधव के नाम से जाना जाता है , आंध्र प्रदेश के बात करे तो गोला, यादव , के नाम से नज जाता है या कुछ जगहों पर राव लिखते है , तमिलनाडू के बात करे तो कोनार , आयर , मायर , इद्दैयर , नैयर , इरुमान , यादव , के नाम से जाना जाता है और अगर केरल की बात करे तो मनियानी , कोलायन , हुली, नायर ,नैयर इत्यादि नमो से यादवो को जाना जाता  है |











धार्मिक मान्यताओ एवं हिन्दू  ग्रंथो के अनुसार यादव जाति का उद्भव पौराणिक राजा यदु से हुआ है जबकि भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य और पुरातात्विक सबूतों  के अनुसार प्राचीन आभीर वंश से यादव जाति की उत्तपत्ति हुयी है हिन्दू महाकाव्य महाभारत में यादव एवं आभीर का सामानांतर उल्लेख हुआ है जहापर यादवो को चंद्रवंशी बताया गया है पौराणिक ग्रन्थ विष्णु पूरण , हरिवंश पुराण , एवं पदम पुराण में यदुवंश का विस्तार से वर्णन किया गया है | लुकिया मिचे लुत्रिन के अनुसार यादव लगातार अपने जाति स्वरूप आचरण एवं कौशल को अपने वंश से जोड़कर देखते आये है जिससे उनके वंश की विशिष्टता स्वतः ही व्यक्त होती है| लुकिया के अनुसार जाति मात्र पदवी नहीं है बल्कि रक्त की गुणवत्ता है| अहीर जाति की वंशावली एवं सैधांतिक क्रम के आदर्शो पर आधारित है एवं उनके पूर्वज गोपालक योद्धा श्रीकृष्ण पर केन्द्रित है जो की एक क्षत्रिय है और यही वजह थी की एक वर्ष १९२० ई० में भारत में अंग्रेजी हुकूमत ने यदुवंश के जाति को है सैन्य वर्ण के रूप में सेना में भर्ती हेतु मान्यता दी जबकि पहले से ही सेना में यादव भर्ती होते आये है इस दौरान अंग्रेजो ने यादवो के लिए चार सैनिक कंपनिया बनायीं थी | राव तुला राम का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है रेवारी नरेश माने जाते है और १८५७ के महँ नायक माने जाते है |
श्रीमद भागवद पुराण के दशम स्कन्द का ६२ श्लोक



नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां योषितः

 वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ६२






गर्ग संहिता में गर्ग ऋषि लिखते है परन्विनिता भुविगोप जातः पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी जी लिखते है की विशुद्ध आर्य रक्त के अलावा विशुद्ध आर्य संस्कृति के आचार विचार भी अहीर जाति में ही पाया जाता है और प्रसिद्ध इतिहासकार श्री अग्रवाल ने अपनी पुस्तक विशाल भारत में यादवो के वर्णन करते हुए लिखे है के इस देश के सभ्यता, संस्कृति, धर्म और भाषा सब अहिरो की देन है कौरव पाण्डव सब अहीर थे और महा माना मदन मोहन मालवीय जी ने कशी में हिन्दुओ के एक विशालसभा में कहा था पुराणों के माना जाये तो अहीर देवताओ के संतान है इसलिए अहीर देवता है और हरिवंश पुराण  में पूर्णतया स्पष्ट किया गया है की नन्द बाबा और बासुदेव रिश्ते में भाई थे जो की राजा यदु के वंशज थे | ऋग्वेद में राजा यदु का वर्णन बहुत विस्तार से मिलाता है और इसलिए उनके वंशज यादव वैदिक क्षत्रिय माने जाते है और राजा यदु ने एक वन में सांप को मार दिया था उसकी वजह से उन्हें अहीर की संज्ञा दी गयी एक और कथन है की भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का वध किया था इस वजह से उन्हें अहीर भी कहा जाता है अहि का अर्थ होता है सर्प और अहीर का अर्थ होता होता है सर्प दमन जिसके चलते यादवो को अहीर भी कहा जाता है  | अलग अलग शास्त्रों में अहिरो को अलग अलग वर्णन लिखा गया है और जैसा की आपने महाभारत में देखा होगा जब भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मणि से शादी की थी तो उनका भाई भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया था तो अपने आप को महायोद्धा समझाने की भूल कर बैठा था तब  उन्होंने रुक्मी को परस्त करने के बाद कहते है  कि जाओ और जाकर पाने पिता से कहना का  आज सम्पूर्ण आर्यावर्त में यादवों से लोहा लेने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता| धार्मिक ग्रंथों एवं पुरानो के अनुसार यादव चंद्रवंशी क्षत्रिय माने जाते है जिसका मैंने शुरू में ही पुरा विवरण कर चुक हु |       









कुछ व्य्वाव्सयिक हितो के लिए इस धारावाहिक में यादवो को बहुत दयानिक स्थिति में देखाया गया है है बहुत से यादव भूल गए है की यादवो का कितना गौरव शाली इतिहास रहा है है मै यह विस्तृत रूप में बताने जा रहा हु के यादवो के इस भारत वर्ष में कितना महत्त्व्पुरण योगदान रहा है इस लेख का उद्देश्य किसी प्रकार का जितिवादी उत्कृष्टता दिखाने या फ़ैलाने का नहीं है बल्कि यह यादवो में एक आत्मविश्वास एवं आत्म प्रेरणा जगाने की एक कोशिश है ताकि यादव भारत के उन्नति और उत्थान में अपना सहयोग जैसा की पहले करा रहे थे वैसा आगे करते रहे  और ज्ञान मात्र के उद्देश्य से यह लेख को लिखा गया है | यादवो को राजा यदु के वंशज माना जाता है और यादवो के बारे में पौराणिक अवं धार्मिक ग्रंथो में विस्तृत जानकारी मिलती है स्वयं भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में यादव वंश में जन्म लिए और इस ऐतिहासिक वंश को गौरवन्वित किया यादव जाती शुरू से ही पराक्रमी एवं स्वत्तंत्र प्रिय जाती रही है इसने समाज में सभी वर्गों को साथ में लेकर चलने के कोशिश की है चुकी यादव वंश में बहुत सारे राजा  महाराजा हुए उनमे से कुछ महत्वपूर्ण यादवो के वंश हुए है उनके बारे में बताने जा रहा हु| इसमे सबसे पहले बताने जा रहा हु









देवगिरी यादव वंश एक भारतीय वंश है इस वंश का सासन काल ८५०-१३३४ ई० में था तथा इस वंश का साम्राज्य तुंगभद्रा से लेकर नर्मदा नदी तक फैला हुआ था जो को इस समय में महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक और कुछ मध्य प्रदेश का हिस्सा सम्मिलित है इस राज्य की राजधानी देवगिरी अर्थात आज के समय में दौलताबाद में थी जो की महराष्ट्र में है |
अगला वंश के बारे में बात करते है और वो है भाटी वंश यह वंश राजस्थान के जैसलमेर में शासन करता था और ये अपने आपको को चंद्रवंशी या यदुवंशी बताते है इसमें कितने सचाई है इसका में पास प्रमाण नहीं है | भाटी वंश या इनको बरगला भी कहते है , राजपूत और गुर्जर के वंशज है जो की भारत और पाकिस्तान के कुछ  में पाए गए  अपने आपको को चंद्रवंशी बताते है |
अब अगला वंश की जो बात कर रहे है वो है करौली यादव वंश यह यादव वंश ९९३ ई० में था और इस वंश की स्थापना राजा विजयपाल ने किये थे जो के एक अहीर शासक थे और अपने आप को भगवान कृष्ण के ८८वां  पीढ़ी के वंशज मानते थे | राजा विजयपाल मथुरा के राजा ब्रम्ह पाल के वंशज थे जो को ९०० ई० में शासन करते थे |
अगर हम राजा महाराजा को छोड़कर यादव शूर वीरो के बारे में देखे तो यादव शूर वीरो की सूचि खत्म ही नहीं होती ही नहीं दिखती है सबसे पहल हम बात करे कताल्लापुरम तमिलनाडू में वीर अलगुमुत्तुकोंन और  (१६८१ -१७३९ ई० ) दक्षिण भारत में तिरुनेल्वेल्ली क्षेत्र के इट्टयप्पा के पोलीगर राजा इट्टयप्पा नाइकर के एक यादव सेनापति थे जोकि तमिलनाडू के मदुरै क्षेत्र से भारत के प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी थे जिनहोने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह की और अंग्रजो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए | भारत सरकार ने इनके नाम पर २०१५ ई० में एक डाक टिकेट जरी किया |
















अब हम बात करते है १८५७ के क्रांति को तो बिहार राज्य में कुवर सिंह के सेना का नेतृत्व रणजीत सिंह यादव ने किया उसके बाद रेवारी हरियाणा में राव रामलाल ने १० मई १८५७ को दिल्ली पर हमला बोलने वाले क्रान्तिकारियो का नेतृत्व किया और लाल किले के किलेदार डगलस को गोली मारकर क्रान्तिकारियो और बहादुर शाह जफ़र के मध्य संपर्क सूत्र की भूमिका निभाई |
अगले वीर के बारे में बात करने जा रहे है वो है रेवारी के राजा राव तुला राम इन्होने १८५७ ई० के चिंगारी प्रस्फुटित होने के साथ ही अपना योगदान क्रांति में दिया इन्होने रावरी में अंग्रेजो के प्रति निष्ठावान कर्मचारियों को बेदखल कर स्थानीय प्रशासन अपने नियंत्रण में ले लिया तथा देल्ली के सहंसा बहादुर शाह जफ़र के आदेश से अंग्रजो के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी १८ नवम्बर १८५७ को राव तुलाराम ने हरियाणा के नारनौल में जर्नल गेरल्ड और उसकी सेना को जमकर टक्कर दी इसी युद्ध के दौरान राव कृष्ण गोपाल ने गेराल्ड के हाथी पर अपने घोड़े से अद्रमण कर गेराल्ड का सिर तलवार से  काट कर अलग कर दिया अंग्रजो ने जब स्वतंत्रता आन्दोलन को कुचलने का प्रयत्न किया तो राव तुला राम ने रूस आदि देशो का मदद लेकर आन्दोलन को गति प्रदान की इस महापुरश का देहांत १८६३ ई० में काबुल में हुआ |आज भी इनका समाधी काबुल में है और जो भी भारतीय जाता बड़ी श्रधा से सर झुकता है और उनके प्रति आदर व्यक्त करता है | प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राव तुला राम के अप्रतिम योगदान के मध्यनजर २३ सितम्बर २००१ ई० को भारत सरकार ने एक डाक टिकेट जरी किया |
प्रिय पाठक चौरी चौरा कांड से कौन वाकिब नहीं होगा इसी आन्दोलन के चलते गाँधी जी ने अपना असहयोग आन्दोलन वापस लिया था बहुत कम ही लोग जानते होंगे के अंग्रेजी जुल्म से परेशान होकर गोरखपुर में चौरी चौरा थाने में आग लगाने वालो का नेतृत्व भगवान यादव ने किया था इसी तरह भारत छोडो आन्दोलन के दौरान गाज़ीपुर के थाना सादात के पास स्थिति मालगोदाम से अनाज छीनकर गरबो में बाटने  वाले दल का नेतृत्व करने वाले में अलगू यादव  अंग्रेज दरोगा के गोलियों का शिकार हुए और बाद में उस दरोगा को घोड़े से  गिरा कर बदरी यादव और बदन सिंह यादव इत्यादि लोगो ने मार गिराया |
अब बात करते है नेता जी सुबाश चन्द्र बोस की जब नेता जी सुबास चन्द्र बोस ने यह नारा दिया की तुम मुझे खून दो मई तुम्हे आज़ादी दूंगा तो तमाम पराक्रमी  यादव नेता जी के INA में सम्मिलित होने के लिए तत्पर हो उठे रेवारी के राव तेज सिंह तो नेता जी के दाहिने हाथ रहे और २८ अंग्रजो को मात्र अपने कुल्हाड़ी से मारकर यादवी पराक्रमी का परिचय दिया INA का सर्वोच सैनिक सम्मान शहीदे भारत नायक मौलार सिंह यादव को उसके बाद हरी सिंह यादव को शेरे हिन्द सम्मान और कर्नल राम स्वरुप यादव को सरदारे जंग सम्मान से सम्मानित किया गया नेता जी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे कैप्टन उदय सिंह यादव आज़ादी के पश्चात देल्ली में असिस्टेंट कमिश्नर बने एवं कई बार गणतंत्र परेड में पुलिस का नेतृत्व भी किया |
अब कुछ आज़ादी के बाद का कुछ पराक्रमी यादवो के बारे में जानते है










अब हम बात करने जा रहे है सन १९६२ ई० में  भारत चीन  युद्ध के दौरान शूर वीरो में अति शूर वीर अहिरो की १३ कुमाऊ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के १२३ जवान मेजर शैतान सिंह के अगुवाई में लेह लद्दाख क्षेत्र की चुसूल घटी के रेजांगला चौकी पर तैनात थे १८००० फीट की उच्चाई पर -४० डिग्री तापमान में लड़ने वाले इन वीरो के पास हथियार बहुत पुराने थे और गोला बारूद बहुत कम था उधर अत्याधुनिक हथियारों से लैस चीनी सैनिको की संख्या ३००० से ज्यादा थी आखिरी सैनिक आखिरी गोली तक चले इस महायुद्ध में  हमारे ११४ जवानों ने प्राणों की आहुति देकर चीन के १४०० से अधिक सैनिको को मौत के घाट उतारा और चीन को युद्ध विराम के लिए मजबूर कर दिया |












अब हम बात करते है कारगिल युद्ध की तो कारगिल युद्ध में अकेले ९१ यादव जवान शहादत को प्राप्त हुए थे अंग्रेजी शासन कल के दौरान भारतीय सेना में अनेक जातियों के नाम से रेजिमेंट बनायीं गयी लेकिन एक बहादुर कौम होने के बावजूद यादव रेजिमेंट नहीं बनी इसका कारण ये था की बहुत से यादव आज़ाद हिन्द फ़ौज में अपना सक्रिय योगदान दे रहे थे अंग्रेजी शासन आज़ाद हिन्द फ़ौज को एक आतंकवादी संगठन मानता था इस वजह से यादव कौम को भी अंग्रेज अपना दुश्मन मानते थे इसलिए उन्होंने अहीर रेजिमेंट नहीं बनायीं|



1 comment:

  1. Hi my self Ashish Yadav I am pleased to read your blog pls if you wright something new or any additional information regarding this topic ple mention me on my id ashishblp@gmail.com

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यदुवंश का इतिहास

यदुवंश का इतिहास | उत्पति और उनके वंशज प्रिय पाठको मैं यह लेख यदुवंश की उत्त्पति के संदर्भ में लिख रहा हु और उनसे जुडी क...